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गणेश आपा पंचांग का प्रकाशन आज से १४८ वर्ष पूर्व सन १८५२ में गंगा के अस्सी घाट क्षेत्र में प्रारम्भ हुआ। पंडित गणेश आपा म्हसकर इस पंचांग के प्रथम संपादक थे। उस समय छपाई लिथो पद्धति से होती थी। विशेष पत्थर पर वह सीधा छापा जाता था। पत्थर पर उकेरने के लिए प्रशिक्षित कारीगर होते थे। उसी प्रकार कागज पर छापने के लिए भी प्रशिक्षित कारीगर होते थे। उस समय पंचांग बहुत ही छोटे आकार में छपता था तथा उसमे तिथि-वार -नक्षत्र-करण के साथ साप्ताहिक ग्रह एवं व्रत- पर्व आदि दिए जाते थे। उनके द्वारा ४८ वर्ष अखण्ड प्रकाशित किये जाने के पश्चात् सन १९२० से पंडित बालकृष्ण शास्त्री ने इसका प्रकाशन संभाला। उस समय तक छपाई मशीन से होने लगी थी। उन्होंने स्वयं ज्योतिष प्रकाश प्रेस की स्थापना की तथा छपाई मशीन से होने लगी।
छपाई की मशीन उस समय हाथ से चलाई जाती थी। जिसके लिए कारीगरों की सहायता ली जाती थी। इसके पश्चात् बिजली आने के बाद ,मशीन चलने का कार्य बिजली की सहायता से होने लगा। सन १९६७ तक यह कार्य अखंड रूप से चलता रहा। पंचांग बड़े आकार में छपने लगा एवं छोटे आकार में भी छपना जारी रहा । सन १९६७ में पंडित बालकृष्ण शास्त्री के स्वर्गवास के बाद यह कार्य अखण्ड रूप से पंडित नारायण म्हसकर के द्वारा संभाला गया। इन्होने छपाई की तकनीक को और बढ़ाया और ऑफसेट मशीनो से छपाई की शुरुआत की। अक्षर संयोजन का कार्य टाइप से बदलकर कंप्यूटर से होने लगा जिससे छपाई काम और आसान हो गया। इन्होने सन १९९३ से एक नए प्रकाशन का प्रारम्भ किया जिसे आज हम गणेश आपा हिंदी पंचांग के नाम से जानते है। संस्कृत भाषा का ज्ञान सामान्य जनता को कम होने से पंचांग समझने में लोगों को परेशानी होती थी। हिंदी पंचांग निकलने से उनके उपयोग की सामगग्री जैसे तिथि, वार, नक्षत्र, व्रत-पर्व, मुहूर्त, सूर्योदय तथा सूर्यास्त, भद्रा आदि को हिंदी में प्रस्तुत किये जाने से लोगो को यह सरल एवं सुविधाजनक हो गया। इसके बाद इन्होने एक नए प्रकाशन, आदित्य प्रकाशन के नाम से प्रारम्भ किया जिसमें धार्मिक किताबो का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इस कार्य में इनके सहायक पंडित काशीनाथ शर्मा का भी योगदान था। इन किताबो की मदद से लोगों को पूजा पाठ के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई। वर्तमान में इसका प्रकाशन पंडित आदित्य म्हसकर सफलता पूर्वक कर रहे हैं।
समय कभी रुकता नहीं। अब धीरे-धीरे इंटरनेट का जमाना आ गया है एवं लोग इसका उपयोग भी करने लगे हैं। अतः देश-काल का बंधन तोड़कर देश-विदेश में रहने वाले सभी सनातनधर्मियों को पंचांग की सुविधा उपलब्ध है। पंचांग का प्रकाशन काशी स्थित "राज राजेश्वरी पुस्तकालय "द्वारा किया जाता है। मेरे अनुभव में ऐसा आया की पंचांग के प्रति लोगो की रुची बढ़ी है परन्तु दिशा-निर्देश न होने से उसका समुचित उपयोग नहीं कर पाते।
इसको ध्यान में रखते हुए समय-समय पर इस बात पर प्रकाश डाला जायेगा।
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